शुक्रवार 6 दिसंबर 2024 - 10:05
भारतीय धार्मिक विद्वानों का परिचय | मौलाना सैयद गुलाम मुर्तज़ा लखनवी

हौज़ा / पेशकश: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूरमाइक्रो फिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फ़ंदेड़वी

हौज़ा न्यूज एजेंसी के अनुसार, सिराजुल उलमा मौलाना सैयद गुलाम मुर्तज़ा 19245 ई. में सरज़मीन लखनऊ पर पैदा हुए। आपके वालिद तिजारत तिजारत पेशा इंसान थे जो आरी दरदोजी का कारोबार करते थे।

सिराजुल उलमा ने अपनी शुरुआती तालीम सआदत गंज के प्राइमरी स्कूल से हासिल की, इसके बाद सुलतानुल मदारिस में तीसरे दर्जे में दाखिला किया । आप वहां के मेहरबान और तजुर्बेकार उस्तादों की ख़िदमत में रहकर अपने मदारिजे इल्मी को तय करते रहे और सुदारिस की आखिरी सनद "सदरुलअफ़ाज़िल" अच्छे नमबरों से हासिल की। मौसूफ ने अपने उस्तादों से भरपूर इस्तिफ़ादा करके फिक़ह, उसूल, अदब, तारीख, शेरो-सुखन में माहात हासिल कर ली। आपने अरबी फ़ारसी बोर्ड के मुनशी, मौलवी, आलिम और फ़ाज़िल के इम्तेहानात दिए और इम्तियाज़ी नंबरों से सनद हासिल की।

आपने जदीद  अरबी अदब औलमा मुजतबा हसन कामुनपुरी से पढ़ी। अल्लामा कामुनपूरी "जामे अजहर मिस्र" से तालीम हासिल करके वापस तशरीफ लाए थे। सिराजुल औलमा गुलाम मुर्तज़ा ने अपनी ज़िंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा अल्लामा कामुनपुरी के साथ बिताया, इसी लिए आपको जदीद अरबी नस्र और नज़्म में कमाल हासिल हुआ। अल्लामा कामुनपुरी ने आपको अरबी मज़ामीन लिखने की भी मश्क़ कराई और अरबी शेर गोई की तरफ भी मुतावज्जा किया। चुनानचे मौलाना हादी की वफ़ात पर आपने अरबी में यादगार मर्सिया कहा जिसे इल्मी हलकों में बहुत सराहा गया और सिराजुल उलमा की फ़नी सलाहीयतों का एतराफ किया गया।

आपके उस्तादों में हादी उल मिल्लत मौलाना सैयद मुहम्मद हादी, आयतुल्लाह सैयद अली रिज़वी, आयतुल्लाह सैयद मोहसिन नवाब, नादेरतुज़ ज़मन मौलाना इब्ने हसन नोनेहरवी और अल्लामा मुजतबा हसन कामुनपुरी वग़ैरह के अस्माए गरामी सर्फ़्रिस्त हैं।

मौलाना गुलाम मुर्तज़ा की तालीम मुकम्मल होने के बाद आपके इल्मी और अदबी सलाहीयत, और तदरीसी फ़न को देखते हुए मादर-ए-इल्मी सुलतानुल मदरास में मुदाररिस की हैसियत से मुंतख़ब कर लिया गया और मौसूफ तशंगाने इल्म को सैराब करने में मशगूल हो गए। आपको अरबी अदब और तारीख़ से बहुत लगाव था। दीवाने रिज़ी, दीवाने अबू तमाम, दीवाने मुतानब्बी, हमासा और नहजुल बलाग़ा की तदरीस में खास मलका था, इन किताबों के सख्त तरीन मुतून को इस तरह हल कर देते थे कि तुल्लाब को इबारत की पेचीदगी का एहसास ही नहीं हो पाता था।

किताबों की तदरीस में हद दरजा माहिर थे, बग़ैर मुआलेआ किए फौरन पढ़ा दिया करते थे। हजारों अरबी अशआर हिफ़्ज़ थे जो अकसर गुफ़्तगू या दीवाने मुतानब्बी पढ़ाते वक़्त सुनाया करते थे। आप शागिर्दों से पिदाराना शफ़क़त फ़रमाते, कभी उन पर ग़ुस्सा नहीं करते, अगर उनसे ग़लती हो जाती तो बड़े ही शफ़ीक़ाना अंदाज़ में समझा दिया करते थे।

मौसूफ को दर्स और तदरीस का इतना शौक था कि बयक वक़्त कई मदरसों में दर्स देते थे। आप ज़ईफ़ी के बावजूद सुलतानुल मदारिस में पढ़ाने के बाद हौज़ा ए इल्मिया “जामे तबलीग़” मूसाहिब गंज में दर्स देने के लिए तशरीफ़ ले जाते थे। आपको जामे तबलीग़ पहुंचने में काफ़ी ताखीर हो जाती थी, कभी तो छुट्टी हो जाती और दूसरे उस्ताद भी अपने घर चले जाते थे, मगर शागिर्द भी सिराजुल औलमा से बहुत ज़्यादा मानूस थे और ज़्यादा से ज़्यादा मौसूफ से फ़ाएदा हासिल करने की कोशिश करते थे। शिया अरबी कॉलेज में भी इमादुल कलाम और इमादुल अदब के दरजे को दर्स देते, जिनमें बड़ी तादाद में तुल्लाब आप से इस्तिफ़ादा करते थे।

आपने सैंकड़ों शागिर्दों की तरबियत की जिनमें मौलाना तैयय्ब रज़ा, मौलाना मिर्ज़ा जाफ़र अब्बास, मौलाना मोहम्मद अतहर काज़मी, मौलाना मिर्ज़ा रज़ा अब्बास, मौलाना सैयद आलिम  महदी, मौलाना इमरान हैदर ज़ैदी, मौलाना मुहम्मद इब्राहीम, मौलाना क़मर ख़ान, मौलाना सैयद रज़ी हैदर ज़ैदी, मौलाना अली गोहर ज़ैदी और मौलाना मुंतज़िर महदी रिज़वी वग़ैरह के नाम लिए जा सकते हैं।

सिराजुल औलमा मौलाना गुलाम मुर्तज़ा को तसनीफ और तालीफ़ से भी लगाव था, यही वजह है कि आपने "क़िरदारे रिसालत", "अलवी निज़ामे हुकुमत", "क़िरदार दबिल खुज़ाई" और "तबलिग़ी मजालिस" दो हिस्सों पर मुश्तमिल किताबें तहरीर फ़र्माईं। मौसूफ ने "तबलिग़ी मजालिस" नामी किताब में इल्मी नुकात क़ुरआन और हदीस की रोशनी में बयान फ़रमाए हैं। यह किताब ज़ाकरीन के लिए मुफ़ीद साबित हुई और इसे ख़िताबत के मैदान में काफ़ी मक़बूलियत हासिल हुई। इनके अलावा आपके मज़ामीन मजल्ला "अलवाइज़" और सरफ़राज़ अख़बार में शाया होते रहते थे।

आप शानदार मुदररिस और मुह़क़िक के साथ-साथ बेहतरीन अरबी-फ़ारसी के शायर भी थे, और यही नहीं बल्कि आपकी ज़ाकरी भी मुक़फ़्फ़ा और मु़सज्ज़ा होती थी, मोमिनीन बहुत पसंद फ़रमाते थे। आपने ज़ाकरी का आगाज़ तहत्तुल-लफ़्ज़ मर्सिया पढ़ने से किया और इसके बाद फिर मसौदे तय्यार किए और बाक़ायदा ज़ाकरी शुरू कर दी। तालेब इल्मी के ज़माने में पहला अशरा इलाहाबाद में पढ़ा जो बहुत कामयाब रहा, हिम्मत बंधी और ज़ाकरी का इर्तेक़ाई सफर शुरू हुआ। आपकी खिताबत में क़ोदमा का अक्स झलकता था।

हिंदुस्तान के मुख़्तलिफ़ शहरों जैसे मुंबई, इलाहाबाद, बनारस, फैज़ाबाद, लखनऊ, मुरादाबाद और अमरोहा जैसी बस्तियाँ जो इल्मी फ़ज़ा का मरकज़ समझी जाती रही हैं में ख़िताबत के जोहर दिखाए और बैरुने मुल्क में भी अशरे ए -मजालिस को ख़िताब किया।

सिराजुल उलमा तदरीस, तहक़ीक़ और तालीफ़, ज़ाकरी और लिखने-पढ़ने को बहुत पसंद फ़रमाते थे वैसे ही वर्ज़िश को भी बहुत अहमियत देते थे और ख़ुद हमेशा वर्ज़िश करते रहे और बुढ़ापे तक कभी वर्ज़िश नहीं छोड़ी।

अल्लाह ने आपको एक बेटी और एक बेटा अता जैसे सैयद मोहसिन मुर्तज़ा के नाम से पहचाना जाता है। आख़िरकार दुनिया-ए-इल्म व अदब की मशहूर और मारूफ़ शख़्सियत, उस्ताज़ुल असातेज़ा, हर दिल अज़ीज़ सिराजुल उलमा मौलाना गुलाम मुर्तज़ा लखनवी 11 फ़रवरी 2010 ई. की रात में तवील अलालत के बाद अपने ख़ालिक़ हकीकी से जा मिले। ग़ुसल और कफ़न के बाद चाहने वालों की मौजूदगी में “कर्बला इमदाद हुसैन” लखनऊ में सुपुर्द-ए-ख़ाक कर दिए गए।

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-9 पेज-356दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2023ईस्वी।  

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